
ABN : पिछले साल 2 अक्टूबर को देश में प्लास्टिक मुक्त देश की शुरुआत हुई थी. इसके बाद प्लास्टिक के प्रयोग पर कई तरह की पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन, इस बीच कोरोना वायरस ने देश में दस्तक दे दिया. इसके बाद पीपीई किट, ग्लव्स से लेकर मास्क और सैनिटाइजर बॉटल तक सब प्लास्टिक के प्रयोग होने लगे. ये एक बड़ी चिंता का विषय था. टेलर एंड फ्रांसिस जर्नल बायोफ्यूल्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पीपीई किट को बायोफ्यूल में बदला जा सकता है. इससे न सिर्फ इसके हानिकारक कचरे से बचा जा सकता है, बल्कि ऊर्जा में भी वृद्धि होगी.
उत्तराखंड के रिसर्चर ने प्रयोग करके ये बताया है कि डिस्पोजेबल पीपीई के अरबों आइटमों से जोकि पॉलीप्रोपाइलीन (प्लास्टिक) से बने होते हैं, उन्हें बायोफ्यूल्स में बदला जा सकता है. इससे एक बड़े प्रदूषण के खतरे को रोका जा सकता है. दुनियाभर में समंदर में पीपीई किट से लेकर मास्क, ग्लव्स और दूसरे चीजें फेंकी जा रही हैं. इससे एक नये तरह का खतरा सामने आ रहा है. इन कचरों से निपटना बहुत जरूरी है. ये पॉलीप्रोपाइलीन से बने होते हैं.
रिसर्चर्स के मुताबिक़स पीपीई का डिजाइन ऐसा ही कि इसे सिर्फ एक बार में यूज किया जा सकता है. इनके निपटारे का समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से इन्हें खुले वातावरण में, मैदानों में और समंदरों में फेंका जा रहा है. ये प्लास्टिक वेस्ट आसानी से नष्ट नहीं होते हैं और इन्हें खत्म होने में दशकों तक का समय लग सकता है.
ऐसे में रिसर्चर्स ने इन्हें रिसाइकल करने पर रिसर्च किया. इसमें पाया गया कि पॉलीमर्स को नष्ट करने के लिए भौतिक और रासायनिक दोनों विधियों की जरूरत है. इसके बाद पायरोलियसिस तकनीकी के बारे में जानकारी हुई, जिससे इन कचरों को नष्ट किया जा सकता है.
इस तकनीकी के मुताबिक़, प्लास्टिक को एक घंटे तक उच्च तकनीकी के दबाव में 300 से 400 डिग्री सेंटीग्रेड टेंपरेचर में रखा जाता है. इस दौरान वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा नहीं होती है. इसे प्लास्टिक को रीसाइकल करने के बेहतर तरीके में एक माना गया है.#SHARE#COMMENT#AmbalaBreakingNews